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इक पगली लड़की के बिन | Ek pagli ladki ........by Dr. Kumar Vishwas

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इक पगली लड़की के बिन | Ek pagli ladki ........by Dr. Kumar Vishwas
इक पगली लड़की के बिन | Ek pagli ladki ........by Dr. Kumar Vishwas


इक पगली लड़की के बिन | Ek pagli ladki ........by Dr. Kumar Vishwas 



अमावस की काली रातों में, दिल का दरवाजा खुलता है
जब दर्द की प्याली रातों में, गम आंसू के संग घुलता है
जब पिछवाड़े के कमरें में, हम निपट अकेले होतें हैं
जब घड़ियाँ टिक टिक चलतीं हैं, सब सोतें हैं हम रोतें हैं
जब बार बार दोहराने से, सारी यादें चुक जाती हैं
जब ऊँच नीच समझाने में, माथे की नस दुख जाती है
तब इक पगली लड़की के बिन, जीना गद्दारी लगता है
पर उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है

                                 *****

जब पोथे खाली होते हैं, जब सिर्फ सवाली होतें हैं
जब ग़जले रास नहीं आतीं, अफसाने गाली होते है
जब बाकी फीकी धूप समेटे, दिन ज़ल्दी ढल जाता है
जब सूरज का लश्कर छत से, गलियों में देर से आता है
जब ज़ल्दी घर जाने की इच्छा, मन ही मन घुट जाती है
जब दफ़्तर से घर लाने वाली, पहली बस छुट जाती है
जब बेमन से खाना खाने पर, माँ गुस्सा हो जाती है
जब लाख मना करने पर भी, कम्मो पढने आ जाती है
जब अपना मनचाहा हर काम कोई लाचारी लगता है
तब इक पगली लड़की के बिन, जीना गद्दारी लगता है
पर उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है


                                 *****
जब कमरें में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है
जब दर्पण में आँखों के नीचे झाई दिखाई देती हैं
जब बडकी भाभी कहतीं हैं कुछ सेहत का भी ध्यान करो
क्या लिखते हो लल्ला दिन भर कुछ सपनों का सम्मान करो
जब बाबा वाली बैठक में, कुछ रिश्ते वाले आते हैं
जब बाबा हमें बुलातें हैं, हम जानें में घबरातें हैं
जब साड़ी पहने लड़की का इक फोटो लाया जाता है
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है
जब सारे घर का समझाना, हमको फनकारी लगता है
तब इक पगली लड़की के बिन, जीना गद्दारी लगता है
पर उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है

                                 *****

अम्मा कहती हैं उस पगली लड़की की कुछ औकात नहीं
उसके दिल में भैया तेरे जैसे ज़ज्बात नहीं
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है
चुप चुप सारे व्रत रखती है पर मुझसे कभी न कहती है
जो पगली लड़की कहती है मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत अम्मा बाबा से डरती हूँ
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा
ये कथा कहानी किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा
बस उस पगली लड़की के संग हँसना फुलवारी लगता है
तब इक पगली लड़की के बिन, जीना गद्दारी लगता है
पर उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है
-डॉ॰. कुमार विश्वास

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